Posted On | 5 Jan 2023 12:02 PM
राजस्थान हाईकोर्ट (Rajasthan High Court) ने माना कि विधवा बहू भी राजस्थान मृतक सरकारी आश्रितों की अनुकंपा नियुक्ति नियम, 1996 के तहत आश्रित के रूप में अनुकंपा नियुक्ति के लिए पात्र हैं। इसके लिए पिंकी बनाम राजस्थान राज्य व अन्य (2012) मामले में डिवीजन बेंच के फैसले पर भरोसा किया।
पीठ ने कहा,
“1996 के नियम कानून का एक लाभकारी टुकड़ा हैं और इसलिए, हमें ‘विधवा-बहू’ को ‘विधवा बेटी’ के एक भाग और पार्सल के रूप में पढ़ने के लिए सामंजस्यपूर्ण ढंग से व्याख्या करनी चाहिए।”
क्या है पूरा मामला?
याचिकाकर्ता की सास को प्रतिवादी विभाग में ‘कुली’ के पद पर नियुक्त किया गया था। हालांकि, उक्त विभाग के साथ काम करने के दौरान उनकी मृत्यु हो गई। इसके तुरंत बाद याचिकाकर्ता के पति यानी मृतक के बेटे ने अनुकम्पा नियुक्ति के लिए आवेदन दिया था। लेकिन कुछ दिन बाद ही याचिकाकर्ता के पति की भी मृत्यु हो गई, जिससे याचिकाकर्ता विधवा हो गई और उसके ऊपर खुद की और तीन नाबालिग बच्चों की देखभाल की जिम्मेदारी आ गई।
याचिकाकर्ता ने एक अशिक्षित महिला होने के नाते अनुकम्पा नियुक्ति के लिए एग्जिक्यूटिव इंजीनियर, राजमार्ग मण्डल, अजमेर को राजस्थान अनुकम्पा नियुक्ति मृतक शासकीय नियमावली, 1996 के अनुसार आवेदन दिया।
परिणामस्वरूप, याचिकाकर्ता ने यह कहते हुए अस्वीकृति पत्र की वैधता को चुनौती दी कि प्रतिवादियों की कार्रवाई अनुकंपा नियुक्तियों की भावना के विपरीत थी।
याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि याचिकाकर्ता के साथ-साथ नाबालिग बच्चों सहित उसका पूरा परिवार जीवित रहने के लिए पूरी तरह से याचिकाकर्ता की सास पर निर्भर था। नियमों में ‘आश्रित’ शब्द में समग्र रूप से वे सभी व्यक्ति शामिल हैं जो जीवित रहने के लिए मृतक सरकारी सेवक पर आर्थिक रूप से निर्भर थे।
प्रतिवादी के वकील ने प्रति विपरीत यह कहा कि मृत सरकारी कर्मचारी की ‘बहू’ नियमों में परिकल्पित ‘आश्रित’ की परिभाषा के अंतर्गत नहीं आती है। इसके अलावा, उत्तरदाता वैधानिक अधिकारी हैं जो प्रतिमा के मापदंडों के भीतर कार्य करने के लिए बाध्य हैं।
कहा गया,
“1996 के नियमों के नियम 2 (सी) की व्याख्या करते समय, हमें एक ‘विधवा बेटी’ की व्याख्या करनी चाहिए, जिसे उक्त नियम के शासनादेश में स्पष्ट रूप से शामिल किया गया है, जिसका अर्थ ‘विधवा बहू’ भी है। भारतीय समाज के रीति-रिवाजों के अनुसार, एक बहू को भी एक बेटी के रूप में माना जाता है क्योंकि वह परिवार की एक अभिन्न सदस्य होती है जिसके पास घर के सभी सम्मान और जिम्मेदारियां होती हैं।”
इसलिए, जस्टिस समीर जैन ने सभी परिणामी लाभों के साथ अनुकंपा नियुक्ति की प्रार्थना को स्वीकार कर लिया। इसलिए रिट याचिका मंजूर की गई।
केस टाइटल: सुशीला देवी बनाम राजस्थान राज्य लोक निर्माण विभाग, लोक निर्माण विभाग, राज्य सचिवालय, जयपुर और अन्य