नई दिल्ली। श्याम सुमन:Thu, 29 Mar 2018 07:15 AM: सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसले में निर्देश दिया है कि देश में जितने भी दीवानी और आपराधिक मामलों में ट्रायल पर स्टे लगा हुआ है, वे छह माह की अवधि के बाद खारिज हो जाएंगे। ये स्टे तभी जारी रह सकेंगे जब उन्हें किसी तार्किक आदेश के जरिये बढ़ाया गया हो।
शीर्ष अदालत ने कहा मुकदमे का कार्यवाही पर स्टे की मियाद छह माह से ज्यादा नहीं हो सकती। जब भी ऐसा स्टे जारी किया जाएगा तो वह छह माह बाद अपने ही समाप्त हो जाएगा जब तक कि उसे स्पीकिंग (विस्तृत कारण देते हुए) आदेश के तहत बढ़ाया न गया हो।
जस्टिस एके गोयल, आरएफ नरीमन और जस्टिस नवीन सिन्हा की तीन जजों की पीठ ने यह महत्वपूर्ण फैसला दो जजों की पीठ के रेफरेंस के जवाब में बुधवार को दिया है। पीठ ने कहा कि हाईकोर्ट को आरोप तय करने के आदेश पर स्टे लगाने का क्षेत्राधिकार है लेकिन यह क्षेत्राधिकार दुर्लभ से दुर्लभतम केसों तक ही सीमिति रहना चाहिए। यहां तक कि जब आरोप तय करने के आदेश को चुनौती दी गई हो, तो ऐसी याचिकाओं पर फैसले में देरी नहीं होनी चाहिए।
कोर्ट ने कहा कि जब स्टे की सूचना मिल जाए तो ट्रायल कोर्ट मामले की तारीख छह माह बाद लगा दे और जैसे ही छह माह की अवधि बीते स्वत: ही ट्रायल को बिना किसी सूचना के शुरू कर दे। क्योंकि स्टे लेने के बाद कोर्ट को सूचित नहीं किया जाता और स्टे अनिश्चितकाल के लिए चलता रहता है।
अनिश्चित काल का स्टे नहीं हो
पीठ ने कहा कि यदि स्टे दिया गया है तो यह बिना शर्त और अनिश्चितकाल के लिए नहीं होना चाहिए। इस मामले में उचित शर्त लगानी चाहिए ताकि जिस पक्ष के लिए स्टे लगाया गया है उसे उसके केस में मेरिट न पाए जाने पर जिम्मेदार ठहराया जा सके।